Friday, 17 June 2016

राधा ना बन पाई.....!!!

मैं तुम्हारी प्रेमिका तो बन गई
तुम्हारी संगिनी बन गई,
पर तुम्हारी दोस्त नही बन पायी.....
तुम्हारा प्यार.....तुम्हारी हर चीज पर,
अधिकार तो मिल गया मुझे,
पर तुम्हारे एहसासों को ना छु पाई.....
तुम्हारे साथ सफ़र पर तो,
चलती रही साथ मैं,
पर तुम्हारे ख़्यालो में ना उतर पाई...
जिस तरह सावन की पहली बूंद,
सिर्फ पपहिये की होती है,
मैं तुम्हारी वो पहली ख़ुशी ना बन पाई,
मैं तुम्हारी जिम्मेदारी तो बन गई,
पर फ़िक्र ना बन पाई...
मैं तुम्हारी हकीकत तो बन गई,
पर तुम्हारी कल्पना सी ना बन पाई...
मैं तुम्हारी अर्धग्नि तो बन गई,
पूरी हो कर भी अधूरी ही रही....
मैं तुम्हारी रुक्मणी तो बन गई,...
पर राधा ना बन पाई.....!!!

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-06-2016) को "स्कूल चलें सब पढ़ें, सब बढ़ें" (चर्चा अंक-2378) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर

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