Thursday 18 September 2014

तुम्हारी उँगलियों में उलझती....मेरी उंगलिया....!!!

तुम्हारी उँगलियों में उलझती....                   
मेरी उंगलिया..
मेरी उलझनों को सुलझा रही है....
सवाल जो करती...
मेरी उंगलिया,
तो कितने ही बहाने से....
ये बहला रही है...

आज हम चुप-चाप बैठे है...
हाथो में लिये हाथ......
आज बाते हमारी उंगलिया कर रही है.....

जैसे ही डर हमारे दिल में......
बिछड़ने का उठता है.....
उंगलियों की पकड़ और,
कसती जा रही है...
हम नही बिछडेंगे....
आपस में उलझती उंगलिया.......
ये एहसास दिला रही है.......

तुम्हारी उंगलिया जो......
मेरी उंगलियों से...
कुछ कहती है....
तो वो मुस्करा कर लिपट जाती है.....
तुम्हारी उंगलियो  ने की..
जो कोई शरारत तो....
मेरी उंगलिया.....
तुम्हारी उंगलियों में सिमट जाती है......
अरसे बाद मिली है....
तुमसे अफ़साने कितने सुना रही है......

अरे....ये कहा तुमने.....
मेरी उंगलियों से......कि 
धड़कने मेरी थम सी गयी है...
तुम जा रहे हो....
तुम्हारी उंगलियो की पकड़ ढीली सी हुई....
कि.… बैचैनिया बढ़ सी गयी है....
मेरी उंगलिया तुमको रोकती बहुत है.....
कि ना जाओ तुमसे......
अभी बहुत कुछ कहना है... 
तुम्हारी उंगलिया मुझसे.....
फिर से मिलने का वादा करके....
मुझसे जुदा होती जा रही है...........!!!

12 comments:

  1. beautiful composition Sushma ji....

    dil ko chhu see gayee...

    meri 100th post pe aapka swagat hai

    http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2014/09/blog-post.html

    ReplyDelete
  2. उँगलियाँ छुट जाये किसी की तो एक होंने में वक्त लगता है
    बहुत ही शानदार रचना :)
     पासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्‍दर भावों को शब्‍दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्‍तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्‍छा लगा, शब्‍दों व नई कविता के प्रति आपका प्रेम सच्‍चा लगा.

    ReplyDelete
  5. अरे....ये कहा तुमने.....
    मेरी उंगलियों से की......
    धड़कने मेरी थम सी गयी है...
    बहुत खुबसुरत पक्तियाँ

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-09-2014) को "हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे" (चर्चा मंच 1742) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  7. bahut sundar ahsaas liye rachna .....

    ReplyDelete
  8. उँगलियों के माध्यम से ट्रांसमिट होता प्रेम ...
    गहरा एहसास ...

    ReplyDelete
  9. वाह, कितना कुछ कहती ये उंगलियां तुम्हारी मेरी।

    ReplyDelete
  10. उम्दा प्रस्तुति.
    मेरे ब्लॉग पर भी आइए ना ...थोड़ा अच्छा लिख लेता हूँ.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

    ReplyDelete
  11. वाह, बिल्कुल अलग अंदाज़

    ReplyDelete
  12. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।मेरे पोस्ट पर आप आमंश्रित हैं।!

    ReplyDelete