Sunday 7 September 2014

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-7

                    51.
बहुत मुस्किल दौर बहुत खूबसूरती के साथ जिया है हमने....
ये पहली बार हुआ कि मुस्करा कर दर्द को भी दर्द दिया है हमने......
                       52.
बादलो ने घेर कर रखा है आसमान को.... 
मेरी आखों को इन्तजार है...
बूंदों के बरसने का....
क्यों की यही बुँदे ही तो है......
जो तुम्हे छु कर मुझ पर बरसती है...
                   53.
आज बड़ी सफाई से किसी ने कहा है मुझसे...
कि इरादतन मैंने कोई गुनाह नही किया...
पर अनजाने में क़त्ल भी हुए है मुझसे.....
                    54.
ये हवाओं के साथ आंधियो का आना...
तुम्हारी यादो के साथ बारिश की हल्की बूंदों से....
मन का भीग जाना....अच्छा लगता है.... 
                    55.
ये पहली बारिश का जादू है...
या तुम्हारे प्यार का पहेला एहसास.......
दोनों मे भी भीगना अच्छा लगता है....
                    56.
कभी यूँ भी हो...यूँ अचानक से तुम मुझे याद कर लो.....
मेरी उम्मीदों से परे ....
जब मुझे इन्तजार न हो....
जब मुझे पता हो कि ये तुम्हारा वक़्त मेरे लिए नही है.....
तभी तुम मुझसे कहो...
कि मेरी पूरी जिन्दगी है तुम्हारे लिये....!!! 
                   57.
जब भी मैंने जिन्दगी को समटने कि कोशिश की.....
किसी का हाथ थाम कर चलने की कोशिश की......
कि तभी हाथो से किसी का हाथ फिसल सा गया....
और काँच की टूट कर बिखरी है जिन्दगी......!!! 
                  58.
खुद को खो दिया है....
भीड़ में वीराने में....
जिन्दगी को कहाँ ले कर आ गये....
बीते हुये कल को भुलाने में.....
               59.
चलो क्यों न इक सफ़र कुछ यूँ तय किया जाये 
जिसकी न कोई मंजिल हो...
न कोई मकसद हो..
क्यों न इक बार यूँ ही बेवजह जिया जाये.......
               60.
धड़कने अब थामने से थमती नही मेरी...
राहे अब सभी जाती है तुम तक.....
क्या कहूँ कि....
मंजिल की मुझे तलाश नही.....
या...मंजिल मिलती नही मुझे........

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