Sunday 7 September 2014

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-9

             71.
तुम्हारे चंद लब्ज़....
मेरी जिंदगी भर के जख्मो का मरहम बन गए.....
एक झूठ ही सही.....
कुछ सच्चे ख्वाब आखों में सज गए......!!! 
              72.
कुछ सोचती हूँ....एहसासो को शब्दो में बांध कर,
तुम तक भेजती हूँ..... 
तुम पढ़ो न पढ़ो.....ये मर्जी तुम्हारी है....! 
               73.
तुम मुझे यूँ ही जीने के एहसास देते रहना..
मैं तुम्हे शब्द देती रहूंगी...
तुम्हे मुझे यूँ ही पढ़ते रहना...
मैं तुम्हे यूँ ही लिखती रहूंगी....
            74.
तुम कहते हो न कि...
मैं अच्छा लिखती हूँ....
और तुम चाहते भी कि...
मैं यूँ लिखती रहूँ तो शर्त है.....
मेरी कि तुम यूँ ही मुझे पढ़ते रहों....
             75.
मेरी रातो का ढलना तुम हो....
मेरी सुबह का निकलना तुम हो.....
             76.
जिन्दगी फिर उन्ही....
राहो पर चल पड़ी है....
कुछ दर्द कुछ ख़ुशी से जो कभी गुजरी थी...
आज फिर आयी वो घडी है......!!! 
               77.
इक जादू कि झपकी देकर.....
मुझे तो तुम्हारी धड़कनो में....
अपना नाम सुनना है......
           

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-09-2014) को "उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए" (चर्चा मंच 1730) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अनुपम भावों का संगम ....

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  3. Bahut Sunder Rachna Hai.
    thank

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  4. shabdon ke moti me bhawon ko sundar tarike se piroya hai .....

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  5. वाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हिन्दी
    और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  6. सुंदर अभिव्यक्ति! आदरणिया सुषमा जी!
    धरती की गोद

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