Sunday 4 March 2018

मैं पुरुष नही, स्त्री ही बनी रहना चाहती थी...!!!

मैं भी हो सकती थी,
तुम्हारी ही तरह कठोर,सख्त..
तुम्हारे जैसे ही फैसलों पर अडिग,
तुम्हारे जैसे ही मानती गलत मतलब गलत,
सही मतलब सही ही मानती,
तुम्हारी ही तरह निर्मोही हो मुँह मोड़ कर,
इक बार जो चल देती तो,
फिर पलट कर नही देखती..
मैं भी कर सकती थी ये सब,
पर मैं नही कर पायी या,
यूं कहो करना ही नही चाहती थी..
क्यों कि मैं पुरुष नही,
स्त्री ही बनी रहना चाहती थी...
मैंने रिश्तो को संजोना सीखा है,
गलतियों पर माफ करना सीखा है..
तुम्हारी हर गलती पर लड़-झगड़ कर भी,
अपने आत्म-सम्मान को दर किनार करके,
सिर्फ रिश्ते को सम्हालना जरूरी समझा है..
पर तुम मेरे झुकने को,
मेरी कमजोरी या मजबूरी ना समझना,
मैंने अपने रिश्तों के लिए,
खुद से लड़ कर,
मजबूत बन कर,तुम्हे माफ करके,
तुम्हे अपनाया है...
तुमने शायद मेरे इस समर्पण को,
मेरी बेवकूफी समझा हो,
पर मैं उतनी ही बेवकूफ बनी हूँ,
जितने से ये रिश्ते सम्हलते है..
क्यों कि मैं समझदार पुरुष नही,
इक बेवकूफ स्त्री ही बनी रहना चाहती थी...
जरा सोचो..
गर मैं तुम्हारी ही तरह,
अड़ियल,जिद्दी,अभिमानी,
अपनी गलती को ना मानने वाली बन जाऊं,
तो क्या होगा..
मैं कभी तुम्हारे मकान को घर ना बनाउंगी,
मैं तुम्हे अपनी कोख से जन्मने ना दूँ,
मैं कभी तुम्हे प्रेम का एहसास ना होने दूँ...
डर गए हो तुम इस स्थिति के ख्याल भर से...
डरने की नही तुम्हे समझने की जरूरत है..
स्त्री को स्त्री रहने दो,
पुरूष बनने पर मजबूर ना करो...
मुझे प्रेम दो,सम्मान करो..
मैं तुम पर अपना सब कुछ न्योछावर कर दूंगी,
बिना किसी शर्त के..
क्यों कि मैं समझदार पुरुष नही,
इक बेवकूफ स्त्री ही बनी रहना चाहती थी...!!!

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