बहुत इम्तहानों से गुजरा ये साल,
कभी तुम्हारे रूठने में,
कभी तुम्हे मनाने में..
कभी प्यार से भरी तुम्हारी शिकायतों में,
कभी तुम्हे खो देने के डर से,
रातो की मेरी सिसकियों में..
बिखरते-बिखरते....
मेरे-तुम्हारे रिश्ते के सँवरने में...
इम्तहान था...तो फेल तो हुए,
पर हमारे बीच प्यार की गहराई के,
ग्रेश मार्क्स से पास भी हो गए...
नाराजगी,गलतिया,शिकायतें,
इन सब को दरकिनार कर,
बस हमारे प्यार ने,
प्यार को हारने नही दिया....!!!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'शनिवार' ३० दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'शनिवार' ३० दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteवाह ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteसच कहा समर्पण ही प्यार को परवान चढ़ाता है। प्रेम में परखने की नियति त्याज्य समझी गई है।
ReplyDeleteकोमल एहसासों की नज़ाकतभरी रचना।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
बढ़िया!!!
ReplyDeleteसुन्दर prstuti
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