तारीखे कहाँ बदलती है,
ये तो बदलते वक़्त के बार-बार,
खुद दोहराती है...
गुजरी तारीखों में कैद कुछ यादो को,
हम उन्ही तारीखों के लौट आने पर,
फिर उन्हें जीते है...
दर्द हो या खुशी,हम उलझे रहते है,
तारीखों के हेर-फेर में..
ये साल ये तारीखे,
सिर्फ कैलेंडर के साथ बदल जायँगे,
ये तारीखे तो कैलेंडर में,
फिर वापस आ जएँगी,
पर जो बिछड़ गये है हमसे,
वो सिर्फ यादो में ही राह जायँगे...
चलो हिसाब कुछ उन यादो का,
उन दर्दो का इन तारीखों का साथ कर लेते है...
तुम मिलना इस बार मुझे उन्ही तारीखों,
साथ बैठ कर कुछ बात फिर कर लेते है...
तारीखे कहाँ बदलती है,
ये तो बदलते वक़्त के,
बार-बार खुद दोहराती है...!!!
Saturday, 9 December 2017
तारीखे कहाँ बदलती है....!!!
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteवाह !!!!बहुत खूब।
ReplyDeleteसुन्दर रचना आहुति
ReplyDeleteवाह !!बहुत खूब।
ReplyDeleteप्रिय सुषमा -- आपके सुंदर ब्लॉग पर आ मन को बहुत ख़ुशी मिली | आपकी रचना अपने आप में नया मौलिक विचार है | सस्नेह बधाई और शुभकामना आपको |
ReplyDeleteप्रिय सुषमा -- आपके सुंदर ब्लॉग पर आ मन को बहुत ख़ुशी मिली | आपकी रचना अपने आप में नया मौलिक विचार है | सस्नेह बधाई और शुभकामना आपको |
ReplyDeleteसुन्दर रचना ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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