चलो आज मैं तुम्हे...
इक बात बताती हूँ....
जो तुम कभी जान नही पाये...
इक ऐसा राज बताती हूँ.......
तुम्हे मैं जैसी पसंद हूँ....
वैसी तो मैं हूँ ही नही....
तुम्हे पता है...
तुम्हारे साथ को मैंने ऐसा जीया..
खुद में तुमको जीने लगी.....
तुम्हे एहसास भी नही होने दिया...
और कब तुम्हारी पसंद मेरी हो गयी...
तुम्हे पता है...?
मुझे काफ़ी बिल्कुल भी नही पसंद थी...
पर तुम्हे जानना था समझना था..
कुछ लम्हे गुजारने थे तुम्हारे साथ...
ना जाने कब तुम्हे समझते-समझते....
मेरी जुबा को काफी का स्वाद भा गया....
चलो आज मैं तुम्हे इक बात बताती हूँ....
जो तुम कभी जान नही पाये...
इक ऐसा राज बताती हूँ.......
तुम्हे मैं जैसी पसंद हूँ वैसी तो मैं हूँ ही नही....
तुमको जो मैं फुलझड़ी सी लगती हूँ...
हमेशा हँसती खिलखिलाती सी दिखती हूँ....
मैं ऐसी बिल्कुल नही हूँ....
मेरे एहसासों की गहराइयों से,
मेरी उदास गहराई तन्हाई से...
तुम अपरचित ही रहे...
तुम्हारे चेहेरे पर मुस्कराहट,
देखने की मेरी जिद ने..
तुम्हारे साथ ने....
मुझे मेरे बचपन से मिला दिया...
तुमसे तुम्हारी जैसी दिखते=दिखते....
मेरी खुद से मुलाकात हो गयी...
खुद को कही खुद में छिपा दिया था....मैंने
मुझे जो तुम मिले....
यूँ लगा कि हाथ पकड़ कर......
मुझे खुद से मिला दिया तुमने...
चलो आज मैं तुम्हे इक बात बताती हूँ....
जो तुम कभी जान नही पाये...
इक ऐसा राज बताती हूँ.......
तुम्हे मैं जैसी पसंद हूँ वैसी तो मैं हूँ ही नही....!!!
इक बात बताती हूँ....
जो तुम कभी जान नही पाये...

तुम्हे मैं जैसी पसंद हूँ....
वैसी तो मैं हूँ ही नही....
तुम्हे पता है...
तुम्हारे साथ को मैंने ऐसा जीया..
खुद में तुमको जीने लगी.....
तुम्हे एहसास भी नही होने दिया...
और कब तुम्हारी पसंद मेरी हो गयी...
तुम्हे पता है...?
मुझे काफ़ी बिल्कुल भी नही पसंद थी...
पर तुम्हे जानना था समझना था..
कुछ लम्हे गुजारने थे तुम्हारे साथ...
ना जाने कब तुम्हे समझते-समझते....
मेरी जुबा को काफी का स्वाद भा गया....
चलो आज मैं तुम्हे इक बात बताती हूँ....
जो तुम कभी जान नही पाये...
इक ऐसा राज बताती हूँ.......
तुम्हे मैं जैसी पसंद हूँ वैसी तो मैं हूँ ही नही....
तुमको जो मैं फुलझड़ी सी लगती हूँ...
हमेशा हँसती खिलखिलाती सी दिखती हूँ....
मैं ऐसी बिल्कुल नही हूँ....
मेरे एहसासों की गहराइयों से,
मेरी उदास गहराई तन्हाई से...
तुम अपरचित ही रहे...
तुम्हारे चेहेरे पर मुस्कराहट,
देखने की मेरी जिद ने..
तुम्हारे साथ ने....
मुझे मेरे बचपन से मिला दिया...
तुमसे तुम्हारी जैसी दिखते=दिखते....
मेरी खुद से मुलाकात हो गयी...
खुद को कही खुद में छिपा दिया था....मैंने
मुझे जो तुम मिले....
यूँ लगा कि हाथ पकड़ कर......
मुझे खुद से मिला दिया तुमने...
चलो आज मैं तुम्हे इक बात बताती हूँ....
जो तुम कभी जान नही पाये...
इक ऐसा राज बताती हूँ.......
तुम्हे मैं जैसी पसंद हूँ वैसी तो मैं हूँ ही नही....!!!
बहुत हि सुंदर , धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत ही उम्दा ...... nice form for express feeling
ReplyDeleteखुद से नील जाना ही बड़ी बात है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
वाह ...बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-10-2014) को "देश जश्न में डूबा हुआ" (चर्चा मंच-1779) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कुछ बातें लगती हैं पर सच में होती नहीं हैं .
ReplyDeletePrem to yahi hai..umda prastuti... Lajawaab rachna!!
ReplyDeleteरूह की गहराइयों से निकले बहुत सुन्दर अहसास... आभार शुषमा जी
ReplyDeleteRecent Post कुछ रिश्ते अनाम होते है:) होते
सुन्दर भावपूर्ण रचना.....आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी
बहुत सही
ReplyDeleteसच्चा प्रेम में स्वयं का दर्शन होता है
एक बात करती कविता----
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in