जब ठहरी सी लगी जिन्दगी,
तो घबरा कर मैं चलने लगी
तो घबरा कर मैं चलने लगी
जब भी हार कर थम गए कदम,
तो देखा जमी चलने लगी...
नजरो से दूर मंजिल ठहरी सी लग रही थी,
मैं जैसे ही बढ़ी मंजिल की तरफ
तो देखा मंजिल भी चलने लगी...
मैं भाग रही थी जितनी भी,
अपनी परछाई से
जा तो रही थी महफ़िल में,
पर देखा मेरे साथ
मेरी तन्हाई भी चलने लगी...
मैं भूलना चाहती थी,
अतीत की यादो को
छोड़ कर जैसे ही
इन यादो को आगे बढ़ी,
पर मुड कर देखा मेरे साथ,
यादे बन कर परछाई चलने लगी...
जब चल रहे थे सभी मेरे साथ,
मैं ठहर जाना चाहती थी
कुछ पल ही गुज़रे
तो देखा मैं ठहरी ही रही
जिन्दगी चलने लगी.....!
बहुत खूब लिखा है आपने...छू जाने वाली कविता!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अहसास भरे हैं .......लाजवाब|
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता .शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteयूँ ही चलती रहे जिंदगी , मंजिल मिल ही जाएगी .
ReplyDeleteज़िंदगी चलती रहनी चाहिए ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासो से भरी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeletenirntr chlte rhnaa hi zindgi hai ...akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteसुभानाल्लाह..........बहुत ही खूबसूरत........
ReplyDeleteखुबसूरत रचना ..
ReplyDeleteमैं भूलना चाहती थी,
ReplyDeleteअतीत की यादो को
छोड़ कर जैसे ही
इन यादो को आगे बढ़ी,
पर मुड कर देखा मेरे साथ,
यादे बन कर परछाई चलने लगी..
यादों से पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है।
बहुत ही अच्छी कविता।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
जा तो रही थी महफ़िल में,
ReplyDeleteपर देखा मेरे साथ
मेरी तन्हाई भी चलने लगी...
kya baat hain :D bahut khoob
ये जिंदगी चलने का ही नाम है ... और चलते ही रहना चाहिए ... लाजवाब लिखा है ...
ReplyDeleteबहुत ... बहुत खुबसूरत भाव संजोयें है...
ReplyDeleteमैं भाग रही थी जितनी भी,
ReplyDeleteअपनी परछाई से
जा तो रही थी महफ़िल में,
पर देखा मेरे साथ
मेरी तन्हाई भी चलने लगी...ye saath nahi chhodti
निरंतर चलना ही शायद ज़िंदगी का असल है...रूकना तो मौत की निशानी है.....शब्दों में छुपे अर्थ को बेहतरीन तरीके से उकेरा है आपने...साधूवाद....
ReplyDeleteजब ठहरी सी लगी जिन्दगी,
ReplyDeleteतो घबरा कर मैं चलने लगी
जब भी हार कर थम गए कदम,
तो देखा जमी चलने लगी...
aisa hota kabhi kabhi jab thakne ke baad bhi aisa lagta hai ki chal rahe hai...aur yah ehsaas sukhad hota hai...
मैं भूलना चाहती थी,
ReplyDeleteअतीत की यादो को
छोड़ कर जैसे ही
इन यादो को आगे बढ़ी,
पर मुड कर देखा मेरे साथ,
यादे बन कर परछाई चलने लगी...
.very nice thinking shushma .....
बहुत खुबसूरत रचना.... आपको नवरात्रि की बधाई... मां आपको हमेशा खुश रखें.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....आपकी यादो का ये सफ़र ......बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना , सुन्दर भाव ,बधाई
ReplyDeletechalna hi jindgi hai. khoobsurat abhivyakti.
ReplyDeleteहम चलें या न चलें जिन्दगी तो चलती ही रहेगी । बहुत सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...
खुबसूरत रचना ..
ReplyDeleteयादो का सफर सुन्दर सफर
दुनिया रुपी इस भंवर में........कौन है किसका मीत.....
ReplyDeleteहर कोई है गा रहा...........सिर्फ उसी का गीत......
सिर्फ उसी का गीत............है फैला इक सन्नाटा....
हर कोई खुद को ही बेहतर .....खुद ही बताता...
कह मनोज कि आपने ..........पाया बड़ा नसीब...
हर पल कोई खास तो........रहता पास करीब....
ज़िन्दगी रुकती नहीं.
ReplyDeleteज़िन्दगी थमती नहीं.
बढ़िया नज़्म.
मैं भूलना चाहती थी,
ReplyDeleteअतीत की यादो को
छोड़ कर जैसे ही
इन यादो को आगे बढ़ी,
पर मुड कर देखा मेरे साथ,
यादे बन कर परछाई चलने लगी...बिलकुल सही कहा सुषमा....यादें कभी पीछा नहीं छोडती .
जब चल रहे थे सभी मेरे साथ,
ReplyDeleteमैं ठहर जाना चाहती थी
कुछ पल ही गुज़रे
तो देखा मैं ठहरी ही रही
जिन्दगी चलने लगी.....!
जिन्दगी का चलना बहुत सुंदर बन पड़ा है ....हर किसी की जिन्दगी में अलग-अलग परिस्थितियाँ होती हैं, लेकिन हार कर बैठना कहाँ सही है ...इसलिए जिन्दगी चलती रहे तो बेहतर है .....!
जिन्दगी से आगे तो बढ़ा नहीं जा सकता... साथ चल सकें तो अच्छा...
ReplyDeleteवैसे महामानवों के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता... शायद...
तो देखा मैं ठहरी ही रही
ReplyDeleteजिन्दगी चलने लगी.....!
beautiful
बहुत ही गहन भाव युक्त रचना जिंदगी चलते जाने का नाम ही है ...सादर !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बधाई हो आपको
ReplyDeleteMADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR
मैं भूलना चाहती थी,
ReplyDeleteअतीत की यादो को
छोड़ कर जैसे ही
इन यादो को आगे बढ़ी,
पर मुड कर देखा मेरे साथ,
यादे बन कर परछाई चलने लगी...
bhut acha.
बहुत सुंदर अह्सास.
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया. लिखते रहिये और खुश रहिये!!
ReplyDeleteBahut Achhi Rachna
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteबधाई |
आशा
बढ़िया ब्लॉग
ReplyDeleteखूबसूरत अहसास ........
ReplyDeleteनिरंतरता बनी रहे!
ReplyDeleteप्रिय सुषमा जी बहुत खूब ...जब दम भर लीजिये रास्ता बन जाता है सुन्दर सन्देश ...जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
ReplyDeleteभ्रमर ५
जा तो रही थी महफ़िल में,
पर देखा मेरे साथ
मेरी तन्हाई भी चलने लगी...
प्रिय सुषमा जी बहुत खूब ...जब दम भर लीजिये रास्ता बन जाता है सुन्दर सन्देश ...जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
ReplyDeleteभ्रमर ५
Fantastic read !!
ReplyDeleteu have a lovely blog :)
जब ठहरी सी लगी जिन्दगी,
ReplyDeleteतो घबरा कर मैं चलने लगी
जब भी हार कर थम गए कदम,
तो देखा जमी चलने लगी...
बहुत ही अच्छी रचना ।
zindgi yun hin guzar jaati hai...
ReplyDeleteजब चल रहे थे सभी मेरे साथ,
मैं ठहर जाना चाहती थी
कुछ पल ही गुज़रे
तो देखा मैं ठहरी ही रही
जिन्दगी चलने लगी.....!
sundar abhivyakti, badhai.
जिंदगी ऐसी ही है. सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति.
ReplyDeleteनवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteजब चल रहे थे सभी मेरे साथ,
ReplyDeleteमैं ठहर जाना चाहती थी
कुछ पल ही गुज़रे
तो देखा मैं ठहरी ही रही
जिन्दगी चलने लगी.....!
वाह ...जिन्दगी का चलना और साथ होना अपनों का कभी तनहाई का ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत खूब ! एक उम्दा रचना के लिए बधाई !
ReplyDeleteजब चल रहे थे सभी मेरे साथ,
ReplyDeleteमैं ठहर जाना चाहती थी
कुछ पल ही गुज़रे
तो देखा मैं ठहरी ही रही
जिन्दगी चलने लगी.....!
.....बहुत सुन्दर अहसास और उनकी लाज़वाब अभिव्यक्ति..
एक अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार । मेरे पोस्ट पर भी आएं ।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
ReplyDeletebahut khoob....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
जमी, मंजिल, तन्हाई, परछाई....
ReplyDeleteinko aap jaise shabdo ke chalak bada hi khoob chala sakte hain...
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