छत पर बैठी तन्हा,
खोई-खोई सी थी,
वो कुछ न बोली,
उसकी आखें बोल रही थी,
वो रात भर नही सोयी थी..
एक टक कर रही इंतजार,
किसी अपने का
वो नही आया टुटा उसका भ्रम,
वो बहुत रोई थी,
आंसुओ में अपने दर्द को,
बहा दिया था उसने
फिर गुमसुम बैठी सोच रही थी
उस पल को जो बीत गया था,
क्या खोया?क्या पाया?
फिर इसमें उलझी,फिर खोई सी थी......
उस एक पल में कितने विचार आते हैं , कितने सो जाते हैं .... जो ठहर गया , वही स्वतंत्र उपलब्द्धि है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही भावनात्मक रचना ...
ReplyDeleteजी |
ReplyDeleteगंभीर मामला |
सहानुभूति है ऐसे किरदार से ||
मैने आपका ब्लोग देखा बहुत अच्छा लगा । आपकी भावपूर्ण और संवेदनात्मक अभिव्यक्ति मन को छू जाती है । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteगहन और सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...वाह!
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना बधाई ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebhut khubsurat......
ReplyDeleteab khoye se rah kar baki kya bacha hai khone ko . aur jo khoye rah kar khoye ja rahe ho use to khone se bachao. :)
ReplyDeletesunder prastuti.
Sundar ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteराम-राम!
sunder bhav ki sunder bhivyakti........
ReplyDeleteक्या किया जाए..सभी के जीवन में ऐसे पल आते हैं कि किसी की प्रतीक्षा करो और वो नहीं आता..पर भ्रम का टूटना बेहतर है एक बार..सारी उम्र पाले रहने से
ReplyDeletebhuat sundar
ReplyDeletevikasgarg23.blogspot.com
इस उलझन से जो निकल पाया उसी का जीवन सार्थक है
ReplyDeleteनई पुरानी हलचल से यहाँ आये थे
ReplyDeleteकुछ उलझ गए 'फिर खोई सी थी ' में
कुछ सुलझे तो दिल से निकल
रहा है आभार,आभार आपकी इस
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए.
मेरा ब्लॉग आपके दर्शनों का उत्सुक है ,सुषमा जी.
बेहतरीन लेकिन मार्मिक तन्हाई...
ReplyDeleteवाह-वाह...
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeletebahut sunder rachna ....
ReplyDeleteसुंदर..!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteViyog ka uttam drashya dikhta hai
ReplyDeleteअतीत सिवाय दर्द के और कुछ नहीं देता |
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है.
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चामंच-645,चर्चाकार- दिलबाग विर्क
सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबढ़िया भाव, सुन्दर संयोजन. अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर बधाई...
ये उलझन बनी ही रहेगी....
ReplyDeleteस्वप्निल सपने ... सुखद अनुभव
ReplyDeletebhavpurna abhivyakti...
ReplyDeleteक्या खोया?क्या पाया?
ReplyDeleteइसका हिसाब लगा पाना बहुत मुश्किल है
भावनात्मक रचना .......
ReplyDeletebahut sunder...
ReplyDeleteमन को झकझोर गयी आपकी रचना का अदाज बहुत ही अच्छा लगा ।
ReplyDeletealag si pyari si.......
ReplyDeleteसुँदर भाव, सुँदर शब्द और सुन्दरतम कविता .
ReplyDeleteAtisundar :)
ReplyDeleteआपने लिखा , छत पर बैठी थी....... फिर चित्र समुन्द्र किनारे बैठी युवती का क्यों चयन किया....???
ReplyDeleteबाकी रचना बेहतरीन है.....
जाने क्या सोच कर नहीं गुजरा , एक पल रात भर नहीं गुजरा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteएक उम्दा रचना.... बधाई...
ReplyDeleteआकर्षण
dard se bahurpoor...
ReplyDeleteआपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
ReplyDeleteजय माता दी..
bhut acha expression.
ReplyDelete♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Bahut hi sunder...
ReplyDeletebahdai.