Tuesday 20 September 2011

फिर खोई सी थी......!!!


छत पर बैठी तन्हा,                                  
खोई-खोई सी थी,
वो कुछ न बोली,
उसकी आखें बोल रही थी,
वो रात भर नही सोयी थी..
एक टक कर रही इंतजार,
किसी अपने का 
वो नही आया टुटा उसका भ्रम,
वो बहुत रोई थी, 
आंसुओ में अपने दर्द को,
बहा दिया था उसने 
फिर गुमसुम बैठी सोच रही थी 
उस पल को जो बीत गया था,
क्या खोया?क्या पाया?
फिर इसमें उलझी,फिर खोई सी थी......

49 comments:

  1. उस एक पल में कितने विचार आते हैं , कितने सो जाते हैं .... जो ठहर गया , वही स्वतंत्र उपलब्द्धि है

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  2. बहुत बढ़िया।


    सादर

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. बहुत ही भावनात्मक रचना ...

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  5. जी |
    गंभीर मामला |
    सहानुभूति है ऐसे किरदार से ||

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  6. मैने आपका ब्‍लोग देखा बहुत अच्‍छा लगा । आपकी भावपूर्ण और संवेदनात्‍मक अभिव्‍य‍क्ति मन को छू जाती है । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  7. गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  8. संवेदनशील रचना बधाई ......

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  10. ab khoye se rah kar baki kya bacha hai khone ko . aur jo khoye rah kar khoye ja rahe ho use to khone se bachao. :)

    sunder prastuti.

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    राम-राम!

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  12. sunder bhav ki sunder bhivyakti........

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  13. क्या किया जाए..सभी के जीवन में ऐसे पल आते हैं कि किसी की प्रतीक्षा करो और वो नहीं आता..पर भ्रम का टूटना बेहतर है एक बार..सारी उम्र पाले रहने से

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  14. bhuat sundar

    vikasgarg23.blogspot.com

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  15. इस उलझन से जो निकल पाया उसी का जीवन सार्थक है

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  16. नई पुरानी हलचल से यहाँ आये थे
    कुछ उलझ गए 'फिर खोई सी थी ' में

    कुछ सुलझे तो दिल से निकल
    रहा है आभार,आभार आपकी इस
    भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए.

    मेरा ब्लॉग आपके दर्शनों का उत्सुक है ,सुषमा जी.

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  17. बेहतरीन लेकिन मार्मिक तन्हाई...
    वाह-वाह...

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  18. बहुत ही अच्‍छी रचना ।

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  19. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  20. Viyog ka uttam drashya dikhta hai

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  21. अतीत सिवाय दर्द के और कुछ नहीं देता |

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  22. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है.
    कृपया पधारें
    चर्चामंच-645,चर्चाकार- दिलबाग विर्क

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  23. सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  24. बढ़िया भाव, सुन्दर संयोजन. अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति....
    सादर बधाई...

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  25. ये उलझन बनी ही रहेगी....

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  26. स्वप्निल सपने ... सुखद अनुभव

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  27. क्या खोया?क्या पाया?

    इसका हिसाब लगा पाना बहुत मुश्किल है

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  28. मन को झकझोर गयी आपकी रचना का अदाज बहुत ही अच्छा लगा ।

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  29. सुँदर भाव, सुँदर शब्द और सुन्दरतम कविता .

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  30. आपने लिखा , छत पर बैठी थी....... फिर चित्र समुन्द्र किनारे बैठी युवती का क्यों चयन किया....???

    बाकी रचना बेहतरीन है.....

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  31. जाने क्या सोच कर नहीं गुजरा , एक पल रात भर नहीं गुजरा ...

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  32. एक उम्दा रचना.... बधाई...

    आकर्षण

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  33. आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
    जय माता दी..

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  34. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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