हर बार मैं कहती हूँ..
जो मैं चाहती हूँ,
वो नही होता है.
फिर एक दिन खुद से पूछ बैठी
आखिर क्या चाहती हूँ मैं?
क्या जो चाहती हूँ मैं,वो होता,
तो क्या सब ऐसा ही होता?
जो हो रहा है क्या मैं,
सच में नही चाहती थी?
एक सवाल के जवाब की तलाश में,
हजारो और सवालो में उलझ गयी मैं!
कितना आसान था ये कहना,
कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
कितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
बहुत ही अच्छे से मन के विरोधाभास को उभारा है आपने।
बेहतरीन।
सादर
एक सवाल के जवाब की तलाश में,
ReplyDeleteहजारो और सवालो में उलझ गयी.
अब तक समझ सके नहीं कि क्या चाहते हैं हम
जो हो रहा है उससे कुछ - जुदा चाहते हैं हम.
बहुत ही खूबसूरती से उलझन को बयां किया है .
कितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?....
बहुत सुन्दर मन की उलझन को दर्शाती भावमयी अभिव्यक्ति...
OMG....nice way to express your dilemma of what you want..
ReplyDeleteजो हो रहा है क्या मैं,
ReplyDeleteसच में नही चाहती थी?
एक सवाल के जवाब की तलाश में,
हजारो और सवालो में उलझ गयी मैं!
wah !!!! bahut khoob kaha aapane..bhaawpoorn rachana...
कितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?.....
काश आसन होता खुद को समझ पाना ,
मेने कहा था उससे न रुलाऊँगी में तुझे
कभी न तू मुझे रुलाना .........
kya chahti hun, ise samajhna jyada mushkil hai...
ReplyDeleteकितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
bahoot khoob :)
khoobsoorat!
ReplyDeleteकितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?....
sahi hai hum khud nahin jante ki akhir hum kya chahate hain
मन की उलझनों को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है ....
ReplyDeleteसुन्दर रचना , बधाई
ReplyDeleteJust waow to make me confused.
ReplyDeletesach hai मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
My Blog: Life is Just A Life
.
कितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
हम भी यही कहेंगे सुंदर भाव अच्छी रचना
बहुत भावप्रणव रचना है।
ReplyDeleteखुशी हुई ये देखकर कि आप ब्लॉग्गिंग भी करती हैं.
ReplyDeleteभावनाएं अच्छी हैं आपकी.
bahut hi sunder bhav ki sunder rachna
ReplyDeletevery nice ....please visit
ReplyDeletehttp://gargi-munjal.blogspot.com/
thanks :)
कल शनिवार २७-०८-११ को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुराणी हलचल पर है ...कृपया अवश्य पधारें और अपने सुझाव भी दें |आभार.
ReplyDeletehttp://podcast.hindyugm.com/2011/08/anugoonj-2011-release.html
ReplyDeleteकृपया अपने हाथों इसे विमोचित करें , अपनी प्रतिक्रिया लिखें , .... जो दिल्ली से हैं वे "Shailesh Bharatwasi" , कांटेक्ट करें
कहाँ से पुस्तकें लेनी हैं , पूछकर ले लें .... जो बाहर हैं वे भी बताएं इस आईडी पर कि कहाँ भेजी जाए .... असुविधा हो तो मुझसे कहें
यही मन का अंतर्द्वंद है...मन कभी नहीं जनता वो क्या चाहता है......हाँ ये ज़रूर जनता है की क्या नहीं चाहता............बहुत सुन्दरता से शब्द दिए हैं आपने इस द्वन्द को|
ReplyDeleteकितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
solah ane sach..!!
कितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं....?
बहुत सुन्दर भावनाएं अच्छी रचना...
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteकितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
baat man ko chhoo gayi .
कैसी उलझन भरी दास्ताँ है.
ReplyDeleteफिर भी जवाब न आसां है.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
यही मन का अंतर्द्वंद है........
ReplyDeleteमन की उथल पुथल को बखूबी लिखा है ... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमन की उथल पुथल को बखूबी लिखा है ... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut sundar rachna...
ReplyDeleteकितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
अंतर्द्वंद्व को अच्छी तरह उकेरा है आपने.... बधाई
वो नहीं मिला जो मैंने चाहा , पर चाहा क्या था मैंने पता नहीं । बहुत सुंदर ...
ReplyDeletevery beautifully you expressed the emotions.. great ..
ReplyDeleteप्रेम यज्ञ की ज्वाला अर्थात् ‘आहुति’...उम्दा, अच्छा जज्बा
ReplyDeleteतुझसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूं मैं,
धीर ेधीरे बजती धुन करीने से सजाया है आपने ब्लाग को
सुषमा जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
वाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअदभुत रचना उम्दा लफ़्ज़ों का चयन! प्रशंशनिये रचना...
ReplyDeleteकितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?
..................सुन्दर रचना , बधाई.............
bahut achchi lagi aapki dubidha......
ReplyDeletebahut hee sundar rachna hai. badhai.
ReplyDeleteसंगीतमय सुन्दर ब्लाग....भावपूर्ण सुन्दर रचना .....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति पर बधाई.............
सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteBahut khub!
ReplyDeleteमन की दुविधा को बयां करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteशायद आपने ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।
कितना आसान था ये कहना,
ReplyDeleteकि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं...
bahut hi khubsoorat rachna...badhai aapko..
जितना मुश्किल होता है खुद से ये जानना
ReplyDeleteउतना ही जरुरी भी
सुन्दर अभिव्यक्ति
आभार...
ReplyDeleteभावप्रणव सुंदर आलेख, आपको बधाई और शुभकामनाएं.
सच तो यह है की जीवन इतना विरोधाभाषी है की हम क्या चाहते हैं......अक्सर ये नहीं जान पाते......इसी सच को अच्छे शब्दों में ढाला है आपने....
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