Wednesday 24 August 2011

क्या चाहती हूँ मैं?


                                 हर बार मैं कहती हूँ..                               
जो मैं चाहती हूँ,
वो नही होता है.

फिर एक दिन खुद से पूछ बैठी 
आखिर क्या चाहती हूँ मैं?
क्या जो चाहती हूँ मैं,वो होता,
तो क्या सब ऐसा ही होता?

जो हो रहा है क्या मैं,
सच में नही चाहती थी?
एक सवाल के जवाब की तलाश में,
हजारो और सवालो में उलझ गयी मैं!

कितना आसान था ये कहना,
कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
उतना ही मुश्किल था ये बताना,
कि क्या चाहती हूँ मैं?




48 comments:

  1. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?

    बहुत ही अच्छे से मन के विरोधाभास को उभारा है आपने।

    बेहतरीन।

    सादर

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  2. एक सवाल के जवाब की तलाश में,
    हजारो और सवालो में उलझ गयी.

    अब तक समझ सके नहीं कि क्या चाहते हैं हम
    जो हो रहा है उससे कुछ - जुदा चाहते हैं हम.

    बहुत ही खूबसूरती से उलझन को बयां किया है .

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  3. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?....
    बहुत सुन्दर मन की उलझन को दर्शाती भावमयी अभिव्यक्ति...

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  4. OMG....nice way to express your dilemma of what you want..

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  5. जो हो रहा है क्या मैं,
    सच में नही चाहती थी?
    एक सवाल के जवाब की तलाश में,
    हजारो और सवालो में उलझ गयी मैं!

    wah !!!! bahut khoob kaha aapane..bhaawpoorn rachana...

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  6. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?.....

    काश आसन होता खुद को समझ पाना ,
    मेने कहा था उससे न रुलाऊँगी में तुझे
    कभी न तू मुझे रुलाना .........

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  7. kya chahti hun, ise samajhna jyada mushkil hai...

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  8. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?
    bahoot khoob :)

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  9. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?....
    sahi hai hum khud nahin jante ki akhir hum kya chahate hain

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  10. मन की उलझनों को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है ....

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  11. सुन्दर रचना , बधाई

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  12. Just waow to make me confused.
    sach hai मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?
    My Blog: Life is Just A Life
    .

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  13. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    हम भी यही कहेंगे सुंदर भाव अच्छी रचना

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  14. खुशी हुई ये देखकर कि आप ब्लॉग्गिंग भी करती हैं.

    भावनाएं अच्छी हैं आपकी.

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  15. bahut hi sunder bhav ki sunder rachna

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  16. very nice ....please visit
    http://gargi-munjal.blogspot.com/
    thanks :)

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  17. कल शनिवार २७-०८-११ को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुराणी हलचल पर है ...कृपया अवश्य पधारें और अपने सुझाव भी दें |आभार.

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  18. http://podcast.hindyugm.com/2011/08/anugoonj-2011-release.html


    कृपया अपने हाथों इसे विमोचित करें , अपनी प्रतिक्रिया लिखें , .... जो दिल्ली से हैं वे "Shailesh Bharatwasi" , कांटेक्ट करें
    कहाँ से पुस्तकें लेनी हैं , पूछकर ले लें .... जो बाहर हैं वे भी बताएं इस आईडी पर कि कहाँ भेजी जाए .... असुविधा हो तो मुझसे कहें

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  19. यही मन का अंतर्द्वंद है...मन कभी नहीं जनता वो क्या चाहता है......हाँ ये ज़रूर जनता है की क्या नहीं चाहता............बहुत सुन्दरता से शब्द दिए हैं आपने इस द्वन्द को|

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  20. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?
    solah ane sach..!!

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  21. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं....?

    बहुत सुन्दर भावनाएं अच्छी रचना...

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  22. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  23. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?
    baat man ko chhoo gayi .

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  24. कैसी उलझन भरी दास्ताँ है.
    फिर भी जवाब न आसां है.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  25. यही मन का अंतर्द्वंद है........

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  26. मन की उथल पुथल को बखूबी लिखा है ... सुन्दर प्रस्तुति

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  27. मन की उथल पुथल को बखूबी लिखा है ... सुन्दर प्रस्तुति

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  28. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?

    अंतर्द्वंद्व को अच्छी तरह उकेरा है आपने.... बधाई

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  29. वो नहीं मिला जो मैंने चाहा , पर चाहा क्या था मैंने पता नहीं । बहुत सुंदर ...

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  30. very beautifully you expressed the emotions.. great ..

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  31. प्रेम यज्ञ की ज्वाला अर्थात् ‘आहुति’...उम्दा, अच्छा जज्बा
    तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूं मैं,

    धीर ेधीरे बजती धुन करीने से सजाया है आपने ब्लाग को

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  32. सुषमा जी,
    नमस्कार,
    आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

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  33. वाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  34. अदभुत रचना उम्दा लफ़्ज़ों का चयन! प्रशंशनिये रचना...

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  35. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं?
    ..................सुन्दर रचना , बधाई.............

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  36. bahut achchi lagi aapki dubidha......

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  37. bahut hee sundar rachna hai. badhai.

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  38. संगीतमय सुन्दर ब्लाग....भावपूर्ण सुन्दर रचना .....
    सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई.............

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  39. सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं

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  40. मन की दुविधा को बयां करती सुंदर रचना।

    शायद आपने ब्‍लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।

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  41. कितना आसान था ये कहना,
    कि जो मैं चाहती हूँ वो नही होता है,
    उतना ही मुश्किल था ये बताना,
    कि क्या चाहती हूँ मैं...

    bahut hi khubsoorat rachna...badhai aapko..

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  42. जितना मुश्किल होता है खुद से ये जानना
    उतना ही जरुरी भी
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  43. आभार...
    भावप्रणव सुंदर आलेख, आपको बधाई और शुभकामनाएं.

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  44. सच तो यह है की जीवन इतना विरोधाभाषी है की हम क्या चाहते हैं......अक्सर ये नहीं जान पाते......इसी सच को अच्छे शब्दों में ढाला है आपने....

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