बिखर गयी हूँ ऐसे,
फिर से बिखरे टुकड़ों को जोड़ रही हूँ
खो गयी अपने बचपन में,
क्या खेलोगी मेरी साथ,
मैं उनसे पूछ रही हूँ
वो मुझको मना रही है,
मैं उनसे रूठ रही हूँ..
उस लुका-छिपी के खेल में,
सब सखिया छिप गयी थी कही,
मैं आज भी दुनिया की भीड़ में,
जिनको ढूंढ़ रही हूँ...
बहुत उम्दा, भावात्मक प्रस्तुति...बधाई
ReplyDeleteजिनको ढूंढ़ रही हूँ...||
ReplyDeletebachpan ke khel niraale mere bhaiya ||
sakhi-saheliyan kaise na yaad aayen ||
bahut sundar prastuti.
ReplyDeleteWah..
ReplyDeletekitna apna pan hi poem me.
sach kam unhe umra bhar to dhundhate hi dunika ki bhid me...!
Atiuttam rachana..aabhar
ReplyDeleteउस लुका-छिपी के खेल में,
ReplyDeleteसब सखिया गयी छिप गयी थी कही,
मैं आज भी दुनिया की भीड़ में,
जिनको ढूंढ़ रही हूँ...
bahut khoob mam
वाह!
ReplyDeleteदुनिया की भीड़ मे नहीं कोशिश कीजिये आपकी वो बिछुड़ी हुई सखियाँ फेसबुक पर ही कहीं होंगी। :)
बहुत ही अच्छी कविता रची है।
सादर
दोस्ती के सुनहरे गीत के साथ शानदार पोस्ट . ये दुनिया छोटी है और जिन्दगी बहुत लम्बी है . बिछड़े दोस्त तो फिर से मिल ही जायेंगे . फ्रेंडशिप डे की शुभकामनाये .
ReplyDeleteकोमल भाव.....
ReplyDeleteबिखर गयी हूँ ऐसे,
ReplyDeleteफिर से बिखरे टुकड़ों को जोड़ रही हूँ
खो गयी अपने बचपन में
अपने बिछड़ी सखियों को ढूंढ़ रही हूँ.
.बहुत सुन्दर मासूम रचना...हैपी फैन्डेशिप डे....
bahut achhi rachna hai. Bachpan bitne ke baad sakha aur sakhiyan aksar yaad aate hain.
ReplyDeletekhoyi aakritiyaan milker bhi nahi milti
ReplyDeleteye to zindgi ki reet hai. kuch purane log juda hote hai to kuch naye log milte hai.
ReplyDeleteवाह जी बलले बल्ल
ReplyDeletegoyaa ki bichhude hue kabhi-kabhi nahin bhi milte......!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह भाव पूर्ण कविता।
ReplyDeleteBahut hi pyari rachna likhi hai mam apne.
ReplyDeleteJai hind jai bharatBahut hi pyari rachna likhi hai mam apne.
Jai hind jai bharat
बहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
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☻/ღ˚ •。* ˚ ˚✰˚ ˛★* 。 ღ˛° 。* °♥ ˚ • ★ *˚ .ღ 。.................
/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
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!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteA real friend is he who gives his shoulder to lean upon in sorrow.
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक- 08-08-2011 सोमवार के चर्चा मंच पर भी होगी, सूचनार्थ
ReplyDeletevkt ki bat hai ykeen maniye vo bhi khin n khi aise hi aapko bhi khooj rhi hongi
ReplyDeletetoo gud dear
ReplyDeleteWish you a very happy friendship day .........
masoom si rachna....achhi lagi...
ReplyDeletehumara bhi hausla badhaaye:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
प्रिय सुषमा जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
आपने हमेशा निर्मल हृदय की कोमल भावनाएं अपनी रचना के माध्यम से व्यक्त की हैं -
सब सखियां छिप गयी थी कही,
मैं आज भी दुनिया की भीड़ में,
जिनको ढूंढ़ रही हूं…
… और मुझे विश्वास है आप उन्हें पा लेंगी
कहा भी है जिन ढूंढ़ा तिन पाइया … :)
… और महात्मा कबीर तो कह गए हैं मो'को कहां ढूंढ़े रे बंदे , मैं तो तेरे पास में
आपके प्रिय , जो सचमुच आपके प्रिय हैं कभी दूर होते नहीं …आपके पास ही होते हैं :))
सुंदर रचना हेतु साधुवाद ! आभार ! बधाई !
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
क्या खेलोगी मेरी साथ,
ReplyDeleteमैं उनसे पूछ रही हूँ
वो मुझको मना रही है,
मैं उनसे रूठ रही हूँ..
kitana sneha liye aakrshan .... prabhavi srijan ....shukriya ji .
bachpan ke dosto se ek bar fir doti karne ka ji chahata hai.....apni nam aankho se unke yaadon me dubne ko ji chahata hai......bahut sundar likha hai aapne...ati uttam
ReplyDeletebahut bhaav poorn prastuti.aapko bhi mitrta divas ki badhaai.pahli baar aai hoon bahut sunder blog hai.musical...vaah.apne blog par bhi aamantrit karti hoon.
ReplyDeleteबहुत उम्दा, भावात्मक प्रस्तुति...बधाई
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति ......
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण और सुंदर ...
ReplyDeleteअतीत की याद दिलाती ये पोस्ट शानदार है |
ReplyDeleteवाह! वाह! खूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
सादर...
bachpan ki sakhiyon ko dhundti friendship day per sunder prastuti badhaai aapko.
ReplyDeletehappy friendship day.
"ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
Komal , pyari rachana
ReplyDeletebehtarin..
ReplyDeleteउस लुका-छिपी के खेल में,
ReplyDeleteसब सखिया छिप गयी थी कही,
मैं आज भी दुनिया की भीड़ में,
जिनको ढूंढ़ रही हूँ...
kitna sundar likha hai ,wo din phir aaye .
khoobsoorat rachna!
ReplyDeleteबहुत खूब .......
ReplyDeleteबहुत सुंदर..... मित्रता दिवस पर सुंदर प्रस्तुति....शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteकम शब्दों में गज़ब की अभिव्यक्ति.मानवीय संवेदनाओं की सुंदर प्रस्तुति. हमें भी याद आया अपना बचपन .
ReplyDeleteउस लुका-छिपी के खेल में,
ReplyDeleteसब सखिया छिप गयी थी कही,
मैं आज भी दुनिया की भीड़ में,
जिनको ढूंढ़ रही हूँ...
बहुत सुंदर.
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही सुंदर कविता बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
I wish ki aapki sakhiyaan jaldi hi mil jaaen...
ReplyDeletemeri bhi kuch sakhiyaan kho gaee hain, kuch mili par kuch abhi bhi nahi mili hain... :(
bas unhi ko khoj rahi hu...
bahut sundar rachna, aabhar.
ReplyDeletebahut sundar rachna...mere blog par aane ke liye shukriya..
ReplyDeleteअति सुंदर, साधुवाद
ReplyDeleteह्रदय की वेदना को स्वर और शब्द देती रचना...
ReplyDeleteबचपन........ भुलाने से भी नहीं भूलता
कल 12/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
क्या बात है जैसे बचपन आ गया हो...बहुत सुंदर कविता है
ReplyDeleteआपका सुन्दर लेखन दिल को छूता है.
ReplyDeleteनयी पुरानी हलचल से आपकी पोस्ट का लिंक मिला.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
देश भक्ति से पूर्ण सुन्दर धुन सुनवाने के लिए भी आभार.
रक्षा बंधन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग को न भूलिएगा.आपका इंतजार है.
सुषमा जी बहुत सुन्दर रचना ..दुवा है की जिसे आप ढूंढ रही है जल्दी मिले ये बचपन की सखी सहेली दिल में छाई रहती हैं -
ReplyDeleteसारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा ... देश गान सुन के मन हँस पड़ा -देवी की कृपा से आनंद आ गया
शुक्ल भ्रमर ५
क्या खेलोगी मेरी साथ,
मैं उनसे पूछ रही हूँ
क्या खेलोगी मेरे साथ कर दीजिये
ReplyDeleteबहुत लाजवाब रचना ... उन पलों को सभी ढूंढ रहे अहिं बचपन के वो पल जो खो गएर हैं कहीं ...
ReplyDeletebahut acche se bhav spasht ho kar saamne aaye....
ReplyDeletesach sabdoorho jate hain..waqt ke sath sath ye badlaav bhi na....