कभी तुम्हे देखू तो देखती रहूँ
कभी तुम्हे सोचूं तो सोचती रहूँ
बस एक आरजू है मेरे दिल की
एक शाम हो तुम्हारे साथ
तुम कहते रहो और मैं सुनती रहूँ.!
तुम्हारे ख्वाब अपनी आँखोँ में बुनती रहूँ
बस एक आरजू है मेरे दिल की
तुम चलो जिस राह पर
तुम्हारे हाथो को थाम
मैं तुम्हारे साथ चलती रहूँ.!
तुम्हारी मुश्किलो को आसान मैं करती रहूँ
बस एक आरजू है मेरे दिल की
तुम्हारे बिना कोई सफ़र तय
मैं न करूँ
तुमसे शुरु हर आगाज़,हर बात
तुम पर ही ख़त्म अंजाम करती रहूँ....!!!
तुम्ही पे शुरु...
ReplyDeleteतुम्ही पे खतम....
वाह...बहुत खूब..
सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteएक आरजू है मेरे दिल की
ReplyDeleteएक शाम हो तुम्हारे साथ
तुम कहते रहो और मैं सुनती रहूँ.!... aur we pal sirf mere ho jayen , waah
प्रेम में समर्पण और अधिकार का मिश्रण . सुँदर भाव प्रवण .
ReplyDeleteतुम्हारे बिना कोई सफ़र तय
ReplyDeleteमैं न करूँ
खूबसूरत ख़्वाहिश ...
बहुत बढ़िया.
ReplyDelete--------------
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...
नयी-पुरानी हलचल
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर,
ReplyDeleteबहुत कोमल भावो को शब्द दिए है आपने
बस एक आरजू हे मेरे दिल की
ReplyDeleteमें गिर जाऊ अगर कभी तो तुम मुझे थामने आओ
अगर डरते हो हो जामने से तो मेरे खावो में आओ
बहुत खूब .बस मानते रहो जरुर आएंगे ...?
very romantic and full of feelings and emotions
ReplyDeletewell written !!
mam apki ye kavita dil ko chu gayi. . Bahut pyari kavita likhi hai apne. . . . . Exam chal rahe hain isliye der se aya hun lekin durust aya hun.
ReplyDeleteJai hind jai bharat.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है.....प्रेम का इतना गहन चित्रण वही कर सकता है जिसने प्रेम को महसूस किया है ......शानदार .......ये दो गलतियाँ लगीं देख लें -
ReplyDeleteअखो - आँखों
मुस्किलो - मुश्किलों
बस एक आरजू है मेरे दिल की
ReplyDeleteएक शाम हो तुम्हारे साथ
तुम कहते रहो और मैं सुनती रहूँ....
बहुत खूब ... प्रेम और समर्पण का रस लिए भाव लिए सुंदर रचना ...
सुषमा जी प्रेम की गहन सुन्दर गूढ़ अभिव्यक्ति और प्रस्तुति -प्यार होता ही ऐसे है हर कुछ में अपने प्रेमी की मूर्ति ही दिखती है उसी से शुरू उसी पे ख़तम --
ReplyDeleteबस एक आरजू है मेरे दिल की
तुम्हारे बिना कोई सफ़र तय
मैं न करूँ
बधाई हो
आइये अपने सुझाव व् समर्थन के साथ भ्रमर का दर्द और दर्पण में भी
शुक्ल भ्रमर५
बस एक आरजू है मेरे दिल की
ReplyDeleteएक शाम हो तुम्हारे साथ
तुम कहते रहो और मैं सुनती रहूँ.!
बुहत सुन्दर
कभी हमारे ब्लॉग पर भी अपना आगमन करे
vikasgarg23.blogspot.com
बस एक आरजू है मेरे दिल की
ReplyDeleteतुम्हारे बिना कोई सफ़र तय
मैं न करूँ
बहुत बढ़िया रचना, बधाई और शुभकामनाएं |
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
साथ निभाने की खूबसूरत आरज़ू..... बहुत सुंदर .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत आरज़ू ..प्यारी सी रचना
ReplyDeleteबहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर .......
ReplyDeleteआगाज का अंदाज गजब का .. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletesushma ji
ReplyDeletebahut hi achhi lagi yah prem bhari abhilashhha.
har pankti dil ko chhooti hai.
badhai
poonam
तुम्हारे ख्वाब अपनी आँखोँ में बुनती रहूँ
ReplyDeleteबस एक आरजू है मेरे दिल की
तुम चलो जिस राह पर
तुम्हारे हाथो को थाम
मैं तुम्हारे साथ चलती रहूँ.!bahut payari rachana....jitni payari aap khud hai utni hi payari har bar aapki abhibaykti hoti hai.....
I AM Deepak Verma..... THis poem is Really very sweet and touch to my heart
ReplyDeleteThanks for writing
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteBahut hi sundar bhav li hui rachna.
ReplyDeletethis is a true affection. Nice poetry.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच{16-6-2011}
बहुत खूब |
ReplyDeleteऔर "कुछ" की गुंजाइस
ही नहीं छोड़ी आपने|
आशीर्वाद ||
बहुत सुन्दर प्रेममयी प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteलिखती रहें..प्रेम कविताओं तक ले जाता है..आप करीब हैं....
ReplyDeleteसादर
इतने प्यारे से भाव .... सच दिल को छू गये .....
ReplyDeleteमेरी हर लफ्जो जो सुनती रही,
ReplyDeleteजो मैं कह न सका वो भी समझती रही,
जो दर्द मैं सम्हाल न सका,
तुमको बताता रहा, तुम सहती रही.
सुन्दर भावमय करती शब्द रचना ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रेममयी प्रस्तुति......
ReplyDeleteतुमसे शुरु हर आगाज़,हर बात
ReplyDeleteतुम पर ही ख़त्म अंजाम करती रहूँ....!!!
---एक यक्ष प्रश्न है "क्यों ...." पुरुष प्रायः यह बात नहीं कहता...
Bahut pyari rachana .shubhkamana
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteसादर
प्रेम की पराकाष्ठा है ये...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बहूत हि कोमल भाव है ..
ReplyDeleteआपकी हर रचना दिल को छु लेनेवाली है
आपके ब्लॉग पर आकर तो मै एकदम भावूक हो जाती हु ..
बहूत हि सुंदर लिखति है आप