इक बार मैं फिर उसे समझा रही थी,
तुमने उसे सालो दे दिए,
फिर भी उसे समझ नही पायी हो..
किसी ने उसे अपने लम्हे दिए,
और तुमसे ज्यादा वो उसे समझती है...
क्यों कि तुम उसका सहारा बनना चाहती थी,
और वो उसका हर कदम साथ देना चाहती है..
जाने कैसे तुम उसकी आँखों मे,
वो खुशी नही देख पा रही हो,
जो अब उसकी आँखों मे,
उसके साथ के साथ दिखती है..
तुममे और उसमें सिर्फ फर्क है इतना,
तुम जीत कर उसे जीतना चाहती हो,
और उसने खुद को हार कर,
उसे जीत लिया है..!!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-04-2018) को ) "अस्तित्व बचाना है" (चर्चा अंक-2935) पर होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
http://bulletinofblog.blogspot.in/2018/04/blog-post_8.html
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