तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी मुझसे....
जो मुस्कराहट मेरी,
तुम्हारे होटों पर मुस्कान लाती थी...
वही आज...
तुम्हे अच्छी नही लगती है....
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जो मेरी बकबक..
तुम्हे दुनिया की उलझनों,
को भुला देती थी...
वही आज मेरा बोलना भी,
तुम्हे अखरता है...
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जिन आखों में मुझे
अपने लिये प्यार दिखता था...
अब वो मुझ पर गुस्सा करती है....
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जिन हाथों का स्पर्श,
मुझे अपनेपन एहसास दिलाता था,
वो अब बस मुझ पर,
डराने के लिये उठते है...
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे.....
जिन शामो को तुम मेरे साथ,
गुजारने के लिये बेचैन रहते थे,
वो शामे अब हमारे बीच,
आती ही नही है...
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जिन छोटे-छोटे पलों को जी कर,
जिनमे तुम जिन्दगी भर..
के सपने सजाते थे..
वो पल अब तुम्हारे,
सपने में भी नही आते है....
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
इतनी शिकायतों के साथ भी,
मुझे तुम्हारा साथ ही चहिये...
मैं हर पल तुम्हारी,
कुछ पलो का गुस्सा..
समझ कर भूलती रही हूँ...
हर पल हर लम्हा,
तुम्हे जैसे मैं पसंद हूँ..
वैसे ही खुद को बनाती रही....
मैं खुद को तो खो सकती थी,
पर तुम्हे खोना मुझे मंजूर नही था...
तुम्हारा साथ देने का वादा है...मेरा...
तुम्हारी शिकायतों के साथ,
भी निभाती रही हूँ....
तुम्हारी शिकायते मंजूर है,
सिर्फ तुम मेरे टूट कर,
बिखरने से पहले,
मुझको सम्हाल लेना...
मुझे कोई शिकायत नही है तुमसे...!!!
जो मुस्कराहट मेरी,
तुम्हारे होटों पर मुस्कान लाती थी...
वही आज...
तुम्हे अच्छी नही लगती है....
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जो मेरी बकबक..
तुम्हे दुनिया की उलझनों,
को भुला देती थी...
वही आज मेरा बोलना भी,
तुम्हे अखरता है...
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जिन आखों में मुझे
अपने लिये प्यार दिखता था...
अब वो मुझ पर गुस्सा करती है....
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जिन हाथों का स्पर्श,
मुझे अपनेपन एहसास दिलाता था,
वो अब बस मुझ पर,
डराने के लिये उठते है...
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे.....
जिन शामो को तुम मेरे साथ,
गुजारने के लिये बेचैन रहते थे,
वो शामे अब हमारे बीच,
आती ही नही है...
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
जिन छोटे-छोटे पलों को जी कर,
जिनमे तुम जिन्दगी भर..
के सपने सजाते थे..
वो पल अब तुम्हारे,
सपने में भी नही आते है....
तुम्हे शिकायते बहुत हो गयी है मुझसे....
इतनी शिकायतों के साथ भी,
मुझे तुम्हारा साथ ही चहिये...
मैं हर पल तुम्हारी,
कुछ पलो का गुस्सा..
समझ कर भूलती रही हूँ...
हर पल हर लम्हा,
तुम्हे जैसे मैं पसंद हूँ..
वैसे ही खुद को बनाती रही....
मैं खुद को तो खो सकती थी,
पर तुम्हे खोना मुझे मंजूर नही था...
तुम्हारा साथ देने का वादा है...मेरा...
तुम्हारी शिकायतों के साथ,
भी निभाती रही हूँ....
तुम्हारी शिकायते मंजूर है,
सिर्फ तुम मेरे टूट कर,
बिखरने से पहले,
मुझको सम्हाल लेना...
मुझे कोई शिकायत नही है तुमसे...!!!
nice
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-05-2015) को बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं; चर्चा मंच 1967 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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waaah anupam bhav sanyojan .....
ReplyDeleteशिकवे शिकायतें भी जिन्दगी का एक हिस्सा हैं. 1ाच्छी लगी रछना1
ReplyDeletebahut pyari kavita....koi sambhal le to baat hi aur kya hai
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ये तो सिर्फ़ वक्त की करवट का हिस्सा है ...वर्ना सब कुछ वैसा ही है..
ReplyDeleteबहुत खूब
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