हे पुरुष..
तुम सदियों से लिखते रहे हो..
स्त्रियों की व्यथा को...
उनके दर्द को...
तुमने दावा किया है...
कि तुम उनकी भावनाओं,
को जस के तस बताया है...
दुनिया को....
तुमने उन पर हो रहे,
अन्याय को लिखा...
तुमने तो स्त्रियों पर लिख-लिख,
कर किताबो के ढेर लगा दिये...
जिसके लिये...
तुम्हे कितने ही सम्मान और,
पुरस्कार मिले है....
पर क्या...?
तुमने ये सोचा...
कि दुनिया भर की स्त्रियों का..
दर्द समझने का..
दावा करने वाले,
क्या तुमने अपने घर की स्त्री
की मन की बात समझी है....?
क्यों तुम्हारे करीब रहते हुए भी...
वो स्त्री अपनी भावनाओं को,
तुम्हे नही समझा पायी....
क्यों उसका दर्द तुम नही देख पाये....
हे-पुरुष...
तुम्हे भले ही कितने,
सम्मान मिले हो...
पर जब तक...
तुम अपने घर की स्त्री की..
आखों में अपने लिए,
सम्मान नही देख पाते हो......
तब तक तुम्हारी सभी..
उपलब्धियां निर्थक है....!!!
तुम सदियों से लिखते रहे हो..
स्त्रियों की व्यथा को...
उनके दर्द को...
तुमने दावा किया है...
कि तुम उनकी भावनाओं,
को जस के तस बताया है...
दुनिया को....
तुमने उन पर हो रहे,
अन्याय को लिखा...
तुमने तो स्त्रियों पर लिख-लिख,
कर किताबो के ढेर लगा दिये...
जिसके लिये...
तुम्हे कितने ही सम्मान और,
पुरस्कार मिले है....
पर क्या...?
तुमने ये सोचा...
कि दुनिया भर की स्त्रियों का..
दर्द समझने का..
दावा करने वाले,
क्या तुमने अपने घर की स्त्री
की मन की बात समझी है....?
क्यों तुम्हारे करीब रहते हुए भी...
वो स्त्री अपनी भावनाओं को,
तुम्हे नही समझा पायी....
क्यों उसका दर्द तुम नही देख पाये....
हे-पुरुष...
तुम्हे भले ही कितने,
सम्मान मिले हो...
पर जब तक...
तुम अपने घर की स्त्री की..
आखों में अपने लिए,
सम्मान नही देख पाते हो......
तब तक तुम्हारी सभी..
उपलब्धियां निर्थक है....!!!
भावपूर्ण रचना .........आपने बिलकुल सही लिखा!!
ReplyDeletevery nice post sushmaji......jab tak tum apny ghar ki stri ki....aakho main apny liye samman nhi dekh paty ho.....tab tak tumhari sabhi...uplabdhiya nirarthak hai.....
ReplyDeleteहो ली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-03-2015) को "होली हो ली" { चर्चा अंक-1911 } पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिलकुल सही कहा आपने..
ReplyDeleteसहमत हूँ इस बात से ... नारी का दिल से सामान होना चाहिए और नारी आपका सामान करे तभी सच है ...
ReplyDeleteपर क्या...?
ReplyDeleteतुमने ये सोचा...
कि दुनिया भर की स्त्रियों का..
दर्द समझने का..
दावा करने वाले,
क्या तुमने अपने घर की स्त्री
की मन की बात समझी है....?
अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
वर्तमान स्थिति का सही आकलन करती, सुन्दर भावों को प्रगट कराती कविता...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteमहिला अधिकारो पर लिखना फैशन हो गया है
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कवि तो अपनी कलम से इस देश को तो जगाते है
पर देश तो हम सब देशवासी अपने घर से बनाते है
नारी अधिकारो पर लिखना तो अब फैशन हो गया है
क्या सचमुच अपने हम घर मे अपना धर्म निभाते है