Tuesday 24 March 2015

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-14

112.
उजाले बहुत थे..मेरे अंधेरो थे लिये....
फिर भी....ता-उम्र तुम्हारी मुस्कराहट का इंतजार करती रही....

113.
वो मेरे इतने करीब से हो कर गुजरा है...
उसके जाने के बाद भी...
मेरे आस-पास..
इक अरसे तक उसका एहसास बिखरा रहा....

114.
कुछ ख्वाब अधूरे थे...
कुछ बाते पूरी थी...
तुम्हारे साथ प्यार तो पूरा था...
तुम्हारे बिन जिन्दगी अधूरी थी...

115.
मैं दिन...रात...सुबह..शाम...
लिखती रही....
तुम्हारा जिक्र कभी नही किया..
फिर भी हर लब्ज़ में तुम्हारा नाम लिखती रही....

116.
मैं लिखना भूल सी रही थी,
कि तुम याद आ गये...

117.
तुम्हारे साथ ही मंजिल मिले..
ऐसा जरुरी तो नही है....
तुम्हारे बिना भी कोई मंजिल हो ऐसा भी नही है...

118.
तुमसे मिल कर मुझमे...
हर रोज कुछ टूटता है....
तुम साथ रहते हो तो क्या? 
मुझसे हर रोज कुछ छूटता है....

119.
गालों से गुलाल तो कल ही छुट गया था...
पर तुम्हारी हथेलियो का एहसास अभी भी बाकी है..... 

120.
आ जाओ फिर गुलाल लगा दो मुझे...
मैं मना भी करू...
फिर भी तुम अपने रंग में रंग लो मुझे.......

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