रोज़ कि तरह दिन आज भी निकला है
पर कुछ उदास सा लग रहा है.…
सर्द रात के ढलते ही ठंठ से ठिठुरता दिन निकला है....
न जाने रात कौन सा ख्वाब देखा है मेरी आखो ने,कि,
खुद को आईने में देखा डरी सहमी सी लग रही है मेरी आँखे....
अभी कुछ समझती कि बदलो की गड़गड़ाहट सुनाई दी....
ये क्या इतनी ठंठ में फिर से बारिश शुरू हो गयी....
अभी कल ही बात हुई तुमसे....तुमने कहाँ था.....
कुछ कि अगर अब बारिश हुई तो बहुत नुक्सान हो जायेगा...
तभी तो जब बारिश हुई तो तुम्हारी बात याद आ गयी...
मैंने कल तो तुम्हे किसी तरह दिलासा देकर तुम्हे समझा लिया था,
ये इम्तहान है जिंदगी के ये बता कर... तुमने कुछ देर के लिए मुश्किलो को भुला दिया था
पर अब क्या कहूँगी तुमसे.....कैसे समझाउंगी तुमको...?
तुम्हे मुश्किलो से टूटते हारते नही देख सकती हूँ.....
इसी उलझन में उलझी-उलझी.....
कुछ सोचते-सोचते अपने लिए चाय बनाने लगी......
कप को हाथो में लेकर पीने के लिये बैठी पर कुछ खोयी सी,
सोच रही थी कि तुम ना जाने क्या सोच रहे होगे..... कही बहुत परेशान तो नही होगे..?
कुछ देर तुमसे ध्यान हटा कर...
खुद के बारे में सोचा तो खुद पर हंस पड़ी,
कि तुम्हारी एक मुश्किल मेरी जिंदगी कि....सारी मुश्किलो के सामने बहुत बड़ी लग रही थी...
खुद टूट जाउंगी....तुम्हे टूटने नही दूंगी....तुम्हे हारने नही दूंगी....
हम प्यार में कितने कमजोर और कितने मजबूत हो जाते है...आज पता चला
जब तुम्हारी हर छोटी से छोटी परेशानी मुझे भी परेशान कर देती है...
अपनी मुश्किलो के हल मिले न मिले..
पर तुम्हारी हर मुश्किल का हल होता है मेरे पास.....
लो तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते चाय ठंठी हो गयी....
चलो फिर से चाय बनाती हूँ......और साथ ही सोचती हूँ कि तुम्हे समझाउंगी...
कि जिंदगी इन छोटी-छोटी मुश्किलो से हरा नही करती......
और मुझे यकीन है कि तुम्हे फिर से जिंदगी से लड़ कर जितना सिखा दूंगी....
बशर्ते इस सच को तुमसे छिपा लूंगी कि.......
मैं बहुत पहले ही जिंदगी और तुमसे हार चुकी हूँ.......!!!
पर कुछ उदास सा लग रहा है.…
सर्द रात के ढलते ही ठंठ से ठिठुरता दिन निकला है....
न जाने रात कौन सा ख्वाब देखा है मेरी आखो ने,कि,
खुद को आईने में देखा डरी सहमी सी लग रही है मेरी आँखे....
अभी कुछ समझती कि बदलो की गड़गड़ाहट सुनाई दी....
ये क्या इतनी ठंठ में फिर से बारिश शुरू हो गयी....
अभी कल ही बात हुई तुमसे....तुमने कहाँ था.....
कुछ कि अगर अब बारिश हुई तो बहुत नुक्सान हो जायेगा...
तभी तो जब बारिश हुई तो तुम्हारी बात याद आ गयी...
मैंने कल तो तुम्हे किसी तरह दिलासा देकर तुम्हे समझा लिया था,
ये इम्तहान है जिंदगी के ये बता कर... तुमने कुछ देर के लिए मुश्किलो को भुला दिया था
पर अब क्या कहूँगी तुमसे.....कैसे समझाउंगी तुमको...?
तुम्हे मुश्किलो से टूटते हारते नही देख सकती हूँ.....
इसी उलझन में उलझी-उलझी.....
कुछ सोचते-सोचते अपने लिए चाय बनाने लगी......
कप को हाथो में लेकर पीने के लिये बैठी पर कुछ खोयी सी,
सोच रही थी कि तुम ना जाने क्या सोच रहे होगे..... कही बहुत परेशान तो नही होगे..?
कुछ देर तुमसे ध्यान हटा कर...
खुद के बारे में सोचा तो खुद पर हंस पड़ी,
कि तुम्हारी एक मुश्किल मेरी जिंदगी कि....सारी मुश्किलो के सामने बहुत बड़ी लग रही थी...
खुद टूट जाउंगी....तुम्हे टूटने नही दूंगी....तुम्हे हारने नही दूंगी....
हम प्यार में कितने कमजोर और कितने मजबूत हो जाते है...आज पता चला
जब तुम्हारी हर छोटी से छोटी परेशानी मुझे भी परेशान कर देती है...
अपनी मुश्किलो के हल मिले न मिले..
पर तुम्हारी हर मुश्किल का हल होता है मेरे पास.....
लो तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते चाय ठंठी हो गयी....
चलो फिर से चाय बनाती हूँ......और साथ ही सोचती हूँ कि तुम्हे समझाउंगी...
कि जिंदगी इन छोटी-छोटी मुश्किलो से हरा नही करती......
और मुझे यकीन है कि तुम्हे फिर से जिंदगी से लड़ कर जितना सिखा दूंगी....
बशर्ते इस सच को तुमसे छिपा लूंगी कि.......
मैं बहुत पहले ही जिंदगी और तुमसे हार चुकी हूँ.......!!!
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.01.2014) को " चली लांघने सप्त सिन्धु मैं (चर्चा -1488)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,नव वर्ष कि मंगलकामनाएँ,धन्यबाद।
ReplyDeleteसच है जीवन छोटी छोटी बातों से नहीं हारना चाहिए ... ये तो दूना उत्साह भरने के लिए हुई हार है ...
ReplyDeleteतुम्हे मुश्किलो से टूटते हारते नही देख सकती हूँ..... nice ....
ReplyDeleteमर्म को छूते हुए शब्द ..
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबेहतरीन भाव संयोजन ...
ReplyDeleteकुछ उदास से पल...
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletebhavpurn...........utam-***
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