कल हमें मेरी एक बहुत पुरानी एक सहेली मिली,बहुत दिनों बाद मिले थे,तो बाते भी बहुत थी...तो बातों-बातों में हमने पूछ ही लिया और ससुराल कैसा है?
पतिदेव कैसे है? तो अब वो जो शुरू हुई तो हम उसे सुनकर दंग रह गए..बोली ससुराल तो ठीक है...
मेरी सास भी अच्छी है..पर हमने अपने पति से कह दिया है कि मैं तो अलग अपनी गृहस्थी बनाऊंगी,
सभी लोग अच्छे है..पर मेरे भी तो कुछ अरमान है,
जो मुझे पूरे करने है...मैं तो अपने पति से कह देती हूं,
जो मुझे चाहिए तो चाहिए.. मुझे नही पता कैसे करोगे,पर हमें चाहिए...मैं उसकी बातें सुनकर हँसने लगी,मैं कहा तुम वही लड़की हो,जो अपने परिवार के पहले सोचती थी,अपनी जरूरते खुद ट्यूशन पढ़ा कर पूरी करती थी....तो वो मेरी बात काटते हुए बोली...ये सब महान कर सबके लिए करते रहना,जिम्मेदारियां निभाना...सबको खुश रखना,..सब बकवास है...अपने लिए खुद हमे सोचना पड़ता है...कोई और नही सोचता...हम नही चाहते कि जिम्मेदारियां निभाते-निभाते हमारी अपनी जिंदगी भी निपट जाएगी...जो मैं होने नही दूंगी....मैं एक दम चुप हो गयी...वो अपनी ही सारी बाते करती रही,और चली गयी....मैं सोचती रही कि, कितनी आसानी से लोग खुद को अपनी हर गलती पर सही साबित कर लेते है...और खुश भी रहते है...और एक हम है अगर कोई रिश्ता भी हमसे छूट जाए,कोई जिम्मेदारी अगर हम ना निभा पाए..तो खुद को माफ नही कर पाते है......#आहुति#
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