इक रात ऐसी भी है,जब नींद नही थी आखो में,
सब कुछ था,साथ भी था..
फिर भी एक अकेलापन,बेचैनी थी मन मे,
क्या इसी रात के लिए मैं अब तक भागे जा रही थी, जवाब कोई नही मिला...
सन्नटा था खामोशी थी,सारे जवाब भी शायद सो रहे थे,बस मुझे छोड़ कर...
मुझे पता कल दिन आज से बेहतर होगा,
शायद मैं भूल भी जाउंगी इस रात को कि मैं बहुत अकेली थी...पर इक टीस रहेगी मन मे...
एक भी शख्स नही मिला जीवन मे....
जो ये मेरी रात साथ जाग के गुजार देता..
नींद अगर नही थी मेरी आँखों मे,वो सोता नही ...
चाँद तारो की बाते करता...
बस बातो में रात गुजर जाती.....
इक रात ऐसी भी है...!!!
Saturday, 5 September 2020
इक रात ऐसी भी है...!!!
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