किसी का जाना यूँ स्वीकार नही किया जाता,मन को मार कर,खुद को इग्नोर करके,उनकी यादो को स्किप कर दिया जाता है,दिख जाए तो उसकी तस्वीर तो हम उनसे आँखे चुराते है,घाव फिर हरे ना जो जाए,बस उसकी हर याद से भागते है...वो कमरा, वो बिस्तर,वो कपड़े जो कुछ उनका समान होता है,रखना सहेज कर चाहते है,पर दोबारा देखना नही चाहते...जब कभी जो धोखे से जो उनका कुछ कहा सामने आ जाता है,तो जैसे दिल फट सा जाता है...मन स्वीकार ही नही कर पाता उनका जाना...जब कि ये शाश्वत है कोई नही आया यहाँ उम्र भर के लिए..फिर दिल कहता है कि कुछ देर और ठहर जाता शाम तक.....#आहुति# बहुत समय से कही मन में दबे थे ये भाव जब से मेरी सासू माँ गयी...कुछ लिख नही पा रही थी...आज लिख दिया तो कुछ हल्का महसूस हुआ.... यादे रह जाती है...
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