Wednesday 1 April 2020

बस यूँ ही कभी-कभी सोचती हूँ....!!!

जब खाली समय मिलता है जो सिर्फ अपना है..जी करता है जीभर रो लूँ...सब निकल दूँ गुबार सारे दिल के....तब सोचती हूँ,सिर्फ अपने बारे में...कई बार यूँ लगता है कि जैसे खो दिया खुद को..सबको खुश-खुश रखते-रखते..इक पल ही ख्याल ये भी आता है सभी रिश्ते बईमानी लगते है...एक लड़की होने के नाते बहुत कुछ भूलने और इग्नोर करती हूं,सिर्फ इसलिए कि जीवन मे सुकून रहे,पर ये भी गलत..जिस सुकून को मैं चाहती हूँ,वो सुकून मेरे अंदर बहुत बड़ा तूफान समेटे होता है,जो बाहर से एकदम शांत और अंदर से बवंडर से कम नही होता.. एक लड़की शादी के बाद जिंदगी ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाती,दो परिवार जिनकी अपनी-अपनी जिम्मेदारियां होती है...हर कोई कहता है मायका और ससुराल में क्या फर्क है,हम बेटी की तरह रखेंते है...पर एक संकोच हमेसा लड़की के दिल रहता है और रहेगा भी की ये उसका मायका नही ससुराल है...खुद को ताक पर रख एक रिश्ते से जुड़ कर उससे जुड़े हर रिश्ते को निभाती है.. मै जानती हूं कि कोई लड़की परफेक्ट तो नही हो सकती पर पराये घर आई लड़की कभी किसी को तकलीफ भी नही देना चाहती  है....मुझे याद बचपन मे मां कहा करती थी कि ये तुम्हारा घर नही है..तुम्हारा घर तुम्हे शादी के बाद मिलेगा...पर सच्ची कहुँ घर तो मेरा वही था,जहां मेरी मर्जी,मेरी खुशी, लड़ना-झगङा सब शामिल था,रिश्ते दिल के थे,दिमाग नही लगाए जाते जाते थे,अपना-पराया कुछ नही था जो था हमारा था....किसी से कुछ भी ले लो,कुछ कह दो कोई फर्क नही पड़ता था बस प्यार होता था...हाँ वही घर था मेरा....कोई शिकायत नही है किसी से...बस यूँ ही कभी-कभी सोचती हूँ....☺#आहुति#

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