रिश्तो में ठगी गई हूं मै...
ना जाने किसने सिखाया था,
याद नही किसने बताया था..
कहाँ से मुझमे ये हुनर आ गया,
रिश्तो को निभाने का..
भावुक थी हर रिश्ते को,
जज्बातों से निभाती रही..
दिमाग से चलने वाली दुनिया मे,
दिल से रिश्ते निभाती रही हूं मैं...
रिश्तो में ठगी गयी हूँ मैं...
मैंने तो उन रिश्तो को भी,
अपने खून से सींचा है,जो खून के नही थे..
उस रिश्ते के भी सातों वचन निभाये,
जो फेरो में बंधे भी नही थे...
कोई साथ देगा या नही देगा,
बिना ये सोचे इन रिश्तो के लिए,
दुनिया से लड़ गयी हूँ..
आज जब पीछे मुड़ कर देखती हूँ,
तो अकेली ही खड़ी हूँ मैं...
निश्छल समर्पित रही इन रिश्तो के लिए...
आज वही रिश्ते,
सवाल बन कर खड़े है सामने,
पूछते है कि क्या हमने कहा था?
रिश्तो को निभाने को...
इस बचकाने से सवाल पर,
खुद पर हँस पड़ी हूँ मैं...
कि रिश्तो में ठगी गयी हूँ मैं...!!!
Sunday, 19 May 2019
रिश्तो में ठगी गई हूं मै...!!!
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