Monday 7 January 2019

किताबो के बीच, तुम्हे ढूंढती हूँ...!!!

मैं कभी बिखेर किताबो के बीच,
तुम्हे ढूंढती हूँ,
बस यूं ही....
शायद तुम मुझे मिल जाओ,
किसी पंक्ति में,किसी शब्द में...
पर ऐसा होता नही है..
मैं पहरों किताबो को निहारती हूँ,
तुम्हे वहां ना पा कर वापस,
उन्हें सहज कर रख देती हूं...
इस उम्मीद में तुम कभी तो मिल जाओगे,
यही कही किताबो में..
मैं तुम्हे पा ही लुंगी यूँ ही शब्दों में..
निहार लुंगी तुम्हे जी भर,
मन भर कर पढ़ लूंगी तुम्हे..!!!

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