सुनो दिसम्बर..जरा ठहरो..
धीरे-धीरे गुजरो...
समेट तो लूं बिखरी हुई यादो को,
दर्ज तो कर लूँ दिल में कुछ तारीखों को,
जिनके साथ का वक़्त कभी गुजरा नही...
बांध कर रख लूं...
उन्हें नजरो से जो छोड़ कर चले गए,
थाम लूं उन हाथो को,
जो बिछड़े तो है पर छूटे नही है...
सुनो दिसम्बर..जरा ठहरो..
जी तो लूँ उन लम्हो को,
जो ठहरें तो है पर अभी गुजरे नही है...!!!
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