बात जब वफ़ाओ की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब एहसासों की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है.......
बात जब यादो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात ख्वाबो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सवालो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब जवाबो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब शब्दों की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब अर्थो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब शाम की ढलने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात रातो के अंधेरो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सूरज निकलने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब हवाओं के रुख की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब बादल के गरजने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सावन की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सखियों से साजन की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात तन्हाई की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
कोई बात करू न करू......
मेरी ख़ामोशी भी जिक्र तुम्हारा करती है.........!!!
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब एहसासों की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है.......
बात जब यादो की करती हूँ,

बात ख्वाबो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सवालो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब जवाबो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब शब्दों की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब अर्थो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब शाम की ढलने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात रातो के अंधेरो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सूरज निकलने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब हवाओं के रुख की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब बादल के गरजने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सावन की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात जब सखियों से साजन की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
बात तन्हाई की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
कोई बात करू न करू......
मेरी ख़ामोशी भी जिक्र तुम्हारा करती है.........!!!