Wednesday, 15 August 2012

मैं कुछ लिखना चाहती हूँ......!!!

आज लिखते-लिखते यूँ ही मेरे हाथ थम गए थे....
जाने क्यों आज शब्दों की पंक्तियाँ नही बन रही है..
मैं लिख तो रही हूँ पर शब्द बिखरे -बिखरे ,
इधर-उधर पड़े है....
जाने क्यों मन की उथल-पुथल,
मेरे शब्दों में दिख रही है।..... 

मैं जितनी ही कोशिश करती हूँ,
मन को शांत करके शब्दों को समेटने की,
उन्हें पिरोने की...
उतनी ही बार मेरे हाथो से,
ये शब्द रेत की तरह निकल जाते है...और 
मैं मौन सिर्फ देखती रहती हूँ.......

आज मैं सोच में हूँ कि...
मैं क्यों लिखना चाहती हूँ ......??
शायद मन को शांत करने के लिये,
अपनी उलझनों को शब्दों में उतर देना चाहती हूँ......या 
शब्दों को मरहम से मन को शांत करना चाहती हूँ......

हो.....कुछ भी हो....सच तो ये है कि...
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ।.....
कुछ ऐसा जो अभी तक खुद से भी नही कह पायी हूँ......
पर क्या है वो.......
अब यही समझना है.....





Friday, 3 August 2012

हर दिन दोस्ती का होता है.....!!!

जिन्दगी का हर दिन दोस्ती का होता है.....

पर हम रोज़ अपने दोस्तों से ये नही कहते....

कि हम उनका ख्याल रखते है.....        

वो एहसास जो हमारे दिल में

अपने दोस्तों के लिए होता है....

उस एहसास का एहसास,

अपने दोस्तों को दिलाने के लिए

ये खास दिन जो सिर्फ,

दोस्ती के नाम हो गया......

दूरियों में सदियाँ बीत जाती है....

यादे धुंधली हो जाती है.....

जिन्दगी हमसे बहुत दूर हो जाती है.....

पर पास आने के लिए...

इक लम्हा ही काफी होता है.......क्यों ना.....

इस लम्हे को जी भर जी ले  

सिर्फ दोस्तों के लिए.......

Wednesday, 1 August 2012